Tuesday, August 31, 2010

उधार की अर्थव्यवस्था


पिछले कुछ दिनों से कई खबरे कई माध्यम से रही है. एक ओर हमारे योजना आयोग सुप्रीमो कहते है की हमारी अर्थव्यवस्था की विकास रफ़्तार 8.5% से ऊपर रहेगी वही दूसरी ओर ये खबर भी आई है की विश्व बैंक और दूसरी ही ऐसी वितीय संस्थाओ से कर्ज लेने में हम सबसे आगे है......ये सोच कर तो लगता है हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था ना हुई किसी गरीब की धोती हो गई..फटी है पर पैसे नहीं..सोचा चलो उधार ले लेते है इज्ज़त तो बची...खैर ले लीया उधार खूब घूमे, इतराए की हमारी धोती तो नई है..पर हाय रे किस्मत...उसकी तो आदत है फूटने की फूट गई...किस्मत के साथ जो धोती फटी तो इस बार कहा से लाये पैसे..... फिर वही गरीबी का फटेहाल नाच... जिसे दुनिया देखेगी और तालियाँ पिटेगी, कूद कूद कर कहेगी देखो इसे बड़ा इतर रहा था अब मजा आया..
दुख तो तब और होता है जब इन उधर मांगे गए पैसे से विकास कार्य ना कर इनकी बंदरबांट होती है...और उस समय हमारे हुक्मुरानो को शर्म भी नहीं आती इन भीख के मिले पैसो को लूटने में....सभी अपने आप को सबसे बड़ा भिखारी साबित करने की होड़ में लग जाते है...तिस पर भी ये हो हल्ला की हम विकास कर रहे है...जिससे कुछ दिनों में विकास कर सूरज को ही खा जायेंगे ये हमारे सम्माननिय भिखारिओ की टोली... और छोड़ देगी हमें अँधेरे की गर्त में. और अगर हम शिकायत करेंगे तो ये फिर हमें फुस्लायेंगे की चुप हो जाओ हम एक नया सूरज बना रहे है जिसके कारण कभी रात होगी ही नहीं, हर जगह उजाला होगा...घरो में, गलियों में, फक्ट्रियो में, पानी के अन्दर, हर जगह बस एक जगह छोड़ कर इन्सान की अन्दर... धन्य है ये भारत भूमि जिसने ऐसे वीर जन्मे..अरे जन्मने से पहले ही इन की माओं ने इनका गला क्यों ना घुट दिया...शायद उन्हें ना मालूम था की ये पूत कपूत निकलने वाले है..

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